Wednesday, March 23, 2022

तुष्टिकरण का लोकतंत्र

                  *तुष्टिकरण का लोकतंत्र*  


डरतंत्र की छाया में हर शक्स सहमा सहमा सा
व्यक्ति पूजा के भक्ति युग में लोकतंत्र है डरा सा

हर शब्द पर अंकुश, हर कलम की स्याही बिकी हुई 
हर मस्तिष्क खाली खाली सा, हर चेतना अब मरी हुई

श्वास देश की इक इशारे पर नाचती जैसे तवायफ़ सी
रक्त लाल को रंगों में बाटा मानवी संवेदनाएं लाश सी

यह कैसी विचारधारा के वश में लोग तमाशबीन खडे 
खोकली कर दी सारी बुनियादे, ढह गए हर स्तंभ खडे

                                                      राजेश लाख