जो बैठे हैं उपर सारे तोते है
ज़रा सी आहट से, हवा हो जायेंगे जानते हैं
बंद पिंजरे के पंछी की भांति असहाय हैं
डर से वो सीखी बोली बोलते हैं
अपनी ज़बान भी वो भूल गए हैं
स्वछन्द उड़ना भी अब गवारा नहीं हैं
कैद में मोती के दानों में खुश हैं
राजेश लाख
दिनांक 07.03.2021