Saturday, August 26, 2023

काफी दिनों से कुछ जो मस्तिष्क में चल रहा है छूटता जा रहा है, सोचता हूं लिखूं पर फिर हालात ऐसे होते जा रहे है कि किसी अपने का मन आहत न हो, कलम हाथ से दूर होती जाती है l पर आज डरते डरते कलम उठाई है और इस याचना के साथ लिख रहा हूं कि अगर किसी की भावनाएं आहत हो जाए तो अग्रिम में क्षमा याचना कर लेता हूंl आज के घटना क्रम में ऐसा प्रतीत होता है कि आज ही सूरज उगा है, आज ही खेतो में फसले लह लहाई है, आज ही हम खुश हुए है l ये किस दौर में हम आ गए है जब मित्र गण हर घटना पर आपको कुछ जताने की कोशिश करते है कि देखो आज ही सूरज उगा है इससे पहले कभी नहीं उगा और उसकी जय जय कार करने के लिए आपको भी बाध्य करते है या ये भाव आपमे डालते है कि यदि आपने उनका समर्थन न किया तो आपके जितना देशद्रोही कोई भी नहीं l ये मानसिकता कहा से, कब और क्यू पैदा हुई और इसकी जरूरत क्या है और वो भी इंसान को इंसान से अलग करने की या द्वेष फैला कर हमारे मन में गृणा का संचार कर कौन अपनी रोटी सेंकने का गुप्त षड्यंत्र रच रहा है l हजारों वर्षों की विविधता में एकता वाली विरासत को किसके आने से सेंध लगी है और क्यू हमारा आपसी भाईचारा उनके आते ही खत्म सा होता जा रहा है l इस धरती पर आज जिसकी सत्ता है यदि आज वो अपने लक्षित समुदायों/ वर्गो के प्रति असहिष्णुता दिखाएंगे और उनके विरुद्ध कार्य करेंगे तो क्या हमने कभी कल्पना की कि जब हमारी सत्ता न होगी तो वो समुदाय/वर्ग आपके साथ क्या बर्ताव करेगा और तब किसी सहिष्णुता की बात करना जायज होगा ? कई सवाल है जिनके प्रश्न हम सबको किसी के बहकावे में या दबाव में न आकर निष्पक्ष होकर एकांत में विचार करने की आवश्यकता है कि वाकई में हमारे रोजमररा के जीवन में हम कितना विवेकपूर्ण और आपसी सद्भाव के साथ आचरण कर रहे है या फिर नकारात्मक सोच से हम ग्रस्त होकर वैमनस्य, द्वेष और अमानवीय भाव और उच नीच की ओछी मानसिकता के साथ इस शरीर और मस्तिष्क को कुलक्षित कर बीमार करते जा रहे है जिसकी लपटों में हम स्वयं ही अपनी आहुति दे रहे है और आने वाली पीढ़ियों को भी नफरती वातावरण की विरासत देकर उनका भविष्य भी अनजाने में खराब करते जा रहे है l जो हो रहा है अच्छा लग रहा है पर जो आगे होगा फिर पछतावे के बिना कुछ न होगा l इंसान पहले बाकी सब बाद में l मानवता का भाव ही एकमात्र कारक है जो हमारी हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाएगी वरना एक ऐसा दौर आएगा जहा केवल रक्त रंजित धरती होगी और कहने को होगा की कभी इस धरती पर इंसान बसते थे l वसुधैव कुटुम्बकम केवल एक घोष वाक्य नही इसमें निहित भाव को पहचानिए इसमें दिखेगा मानवतावाद जो जाति भेद, धर्म भेद, रंग भेद, नस्ल भेद, प्रांत भेद आदि का गुलाम नहीं है l हमारे मन में मानव को मानव से किसी भी भेद का संचार करने वाली शक्ति को पहचानो कि वो ऐसा किस लिए, किस मकसद से, किस विचार से कर रहा है l और क्या वाकई में हमारा जीवन उनके सपने साकार करने के लिए मात्र एक साधन है जिसे जैसा चाहा वैसे इस्तमाल किया l क्या हमे अपना विवेक नही है, क्या हम बुरे भले की पहचान करने में असमर्थ है और जैसे भेड़ बकरियों को जिस दिशा में हाका जाता है वो उसी दिशा में अग्रसर होते है हमारा वजूद भी वही है l इंसान पहले, जिसका जीवंत एक मस्तिष्क हो, जिसका जमीर जागा हुआ है, जिसका विवेक किसी का गुलाम नहीं उनकी ये जिम्मेवारी है कि हम समावेशी संस्कृति का वहन करते हुए भाई चारे के साथ हकीकत में बिना किसी लाग लपेट और जुमलेबाजी के वसुधेव कुटुम्बकंब का भाव साकार करते हुए समृद्ध भारत का निर्माण करे lराजेश लाख की कलम से आज की स्थिति से प्रेरित यह लेखl

Wednesday, March 23, 2022

रंग बदलते गिरगिट

 रंग बदलते गिरगिट नहीं इंसान देखे है

वक्त निकल जाने पर  खुदगर्ज़ देखे है
रिश्तों की अहमियत नहीं दौलत पर नज़र है
ये कैसे रिश्ते है जसकी बुनियादें खोकली है
भावनाये संवेदनाये सब बिखर गए बागबान के चलते ही
खून के रिश्ते भी तार-तार हो गए



🇮🇳 स्वतंत्रता दिन पर मेरा विशेष लेख 🇮🇳

 🇮🇳 स्वतंत्रता दिन पर मेरा विशेष लेख  🇮🇳


         देश स्वतंत्रता का जश्न मना रहा हैं, लोग एक दूसरे को बधाई दे रहें हैं और छुप छुप के देश पूंजीपतियों के शिकांजे में जकड़ा जा रहा हैं l देश दिखने में स्वतंत्र लग रहा हैं और हम भी इसी भ्रम में खुश होकर जश्न मना रहें हैं l जिस तरह अंग्रेज़ व्यापार के बहाने से भारत को अपना गुलाम बनाने में कामयाब रहें थे उसी तर्ज़ पर अपना देश धीरे -धीरे पूंजीपतियों के अधीन होता जा रहा हैं वो दिन दूर नहीं जब हम जश्न में डूबे लोग यह जानकर पछताएंगे कि हमने एक व्यक्ति की जय-जयकार में अपनी स्वतंत्रता खो दी हैं और निश्चित ही अंध विश्वास से ठगा हुआ महसूस करेंगे l भारत  की आत्मा ज़ार- ज़ार होकर कृदन कर रही हैं, संवैधानिक तंत्र की नीव धीरे-धीरे ढहती जा रही हैं l

🇮🇳राजेश लाख 🇮🇳

तोते

 जो बैठे हैं उपर सारे तोते है

ज़रा सी आहट से, हवा हो जायेंगे जानते हैं 
बंद पिंजरे के पंछी की भांति असहाय हैं 
डर से वो सीखी बोली बोलते हैं
अपनी ज़बान भी वो भूल गए हैं
स्वछन्द उड़ना भी अब गवारा नहीं हैं
कैद में मोती के दानों में खुश हैं

राजेश लाख
दिनांक 07.03.2021

*ll क्षण भंगुर जीवन ll*

 *ll क्षण भंगुर जीवन ll*


जीवन कब किस और करवट बदल दे कोई नहीं जानता, कुदरत अपनी तरह से दुनिया चलाता है l चीन के वुहान शहर से एक जानलेवा वायरस पूरी दुनियां को तीसरे महायुद्ध की भांति अपनी चपेट में ले लेता है और लाखों जाने चली जाती है l नागपुर के पुष्पांजलि अपार्टमेंट का हस्ता खेलता परिवार जिसमे माता पिता,  बेटा बहू,  पोती और एक पोता है l 20 जुलाई,  2020 की रात को पिता को अस्पताल में भर्ती करने के बाद अपनी माँ के साथ घर लौट आता है और उसी रात घर पर माँ की  तबियत अचानक बिगड़ जाती है एम्बुलेंस को फोन किया जाता है पर कोई मदद नहीं मिलती और बेटे के सामने माँ दम तोड़ देती है, बेटा चीखता चिल्लाता है पर कही से कोई मदत नहीं मिलती,  रात भर माँ के मृत शरीर को निहारता, बिलखता, रोता बेटा कुछ सवर ही पता है कि  21 जुलाई 2020 की सुबह अस्पताल से उसके पिता के भी चल बसने की खबर आती है,  बूढ़े माता पिता के अचानक इस दुनियां से चले जाने से पूरा परिवार सदमे में सन्न रह जाता है l बेटा, बहु और पोती के कोविड 19 के पॉजिटिव होने के कारण बेटे का हाथ तक उसके माता पिता की चिता को नहीं लगता,  इस विचित्र और लाचार परिस्थिति से बेबस परिवार जन मानसिक रूप से टूट जाते हैl इस बेबसी में बस आंसू ही एक मात्र सहारा और अपने भविष्य अर्थात बीबी बच्चों की चिंता में बेटा ना जाने कितने ही विचारों से घिर जाता है,  उसे कुछ सूझता नहीं कि वो क्या करें क्या ना करें l आपने माता पिता का साया अचानक उठ जाने के दर्द और पीड़ा के साथ- साथ प्रशासन के बदहाल व्यवस्था से भी उसे झूझना पड़ता है l पिने के लिए वाटर कूलर का पानी ( जो कि कोविड से संक्रमितों के लिए अनुकूल नहीं होता ), टॉयलेट  बाथरूम में गन्दगी,  कॉकरोच आदि और खाने का भोजन भी बेस्वाद शायद कैदियों को भी ऐसा खाना नहीं दीया जाता होगा जेल में l खैर ईश्वर की कृपा से बेटा बहू और बच्ची इस महामारी से बाहर निकल आते है पर यह टीस बेटे के मन में हमेशा रहती है कि वह अपने माता पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाया और बस अस्ति विसर्जन के संस्कार पर ही उसे संतुष्ट होना होगा l

✒️राजेश लाख

नमक

 समझकर सुलझा हुआ,  अपनेपन में कुछ कह दीया हमने l

वो हमें अपना न समझ, दूसरों से शिकायत कर बैठे ll
इससे तो अच्छा था कि नमक न खाते,  न पनाह में उनकी रहते l
अहसास यु कि वो अपने है, यह भ्रम तो न हम दिल में पालते ll

हमारे बुजुर्गो पर

 ये पल,  वो यादें, दिल में सदा महकती रहेगी,  बस ! वो अपने, उन बुजुर्गों का सीर पर हाथ,  वो सांत्वना के बोल,  वो डाट,  वो प्यार,  वो दुलार,  वो रूठना, वो मनाना सब कही खलेगा,  कुछ पल की यादें गुदगुदायेगी, कुछ में आँखों से नीर स्वयं ही बहेगे,  बस यादें,  कुछ खट्टी,  कुछ मीठी.................. 🌹🙏🌹