Wednesday, March 23, 2022

रंग बदलते गिरगिट

 रंग बदलते गिरगिट नहीं इंसान देखे है

वक्त निकल जाने पर  खुदगर्ज़ देखे है
रिश्तों की अहमियत नहीं दौलत पर नज़र है
ये कैसे रिश्ते है जसकी बुनियादें खोकली है
भावनाये संवेदनाये सब बिखर गए बागबान के चलते ही
खून के रिश्ते भी तार-तार हो गए



🇮🇳 स्वतंत्रता दिन पर मेरा विशेष लेख 🇮🇳

 🇮🇳 स्वतंत्रता दिन पर मेरा विशेष लेख  🇮🇳


         देश स्वतंत्रता का जश्न मना रहा हैं, लोग एक दूसरे को बधाई दे रहें हैं और छुप छुप के देश पूंजीपतियों के शिकांजे में जकड़ा जा रहा हैं l देश दिखने में स्वतंत्र लग रहा हैं और हम भी इसी भ्रम में खुश होकर जश्न मना रहें हैं l जिस तरह अंग्रेज़ व्यापार के बहाने से भारत को अपना गुलाम बनाने में कामयाब रहें थे उसी तर्ज़ पर अपना देश धीरे -धीरे पूंजीपतियों के अधीन होता जा रहा हैं वो दिन दूर नहीं जब हम जश्न में डूबे लोग यह जानकर पछताएंगे कि हमने एक व्यक्ति की जय-जयकार में अपनी स्वतंत्रता खो दी हैं और निश्चित ही अंध विश्वास से ठगा हुआ महसूस करेंगे l भारत  की आत्मा ज़ार- ज़ार होकर कृदन कर रही हैं, संवैधानिक तंत्र की नीव धीरे-धीरे ढहती जा रही हैं l

🇮🇳राजेश लाख 🇮🇳

तोते

 जो बैठे हैं उपर सारे तोते है

ज़रा सी आहट से, हवा हो जायेंगे जानते हैं 
बंद पिंजरे के पंछी की भांति असहाय हैं 
डर से वो सीखी बोली बोलते हैं
अपनी ज़बान भी वो भूल गए हैं
स्वछन्द उड़ना भी अब गवारा नहीं हैं
कैद में मोती के दानों में खुश हैं

राजेश लाख
दिनांक 07.03.2021

*ll क्षण भंगुर जीवन ll*

 *ll क्षण भंगुर जीवन ll*


जीवन कब किस और करवट बदल दे कोई नहीं जानता, कुदरत अपनी तरह से दुनिया चलाता है l चीन के वुहान शहर से एक जानलेवा वायरस पूरी दुनियां को तीसरे महायुद्ध की भांति अपनी चपेट में ले लेता है और लाखों जाने चली जाती है l नागपुर के पुष्पांजलि अपार्टमेंट का हस्ता खेलता परिवार जिसमे माता पिता,  बेटा बहू,  पोती और एक पोता है l 20 जुलाई,  2020 की रात को पिता को अस्पताल में भर्ती करने के बाद अपनी माँ के साथ घर लौट आता है और उसी रात घर पर माँ की  तबियत अचानक बिगड़ जाती है एम्बुलेंस को फोन किया जाता है पर कोई मदद नहीं मिलती और बेटे के सामने माँ दम तोड़ देती है, बेटा चीखता चिल्लाता है पर कही से कोई मदत नहीं मिलती,  रात भर माँ के मृत शरीर को निहारता, बिलखता, रोता बेटा कुछ सवर ही पता है कि  21 जुलाई 2020 की सुबह अस्पताल से उसके पिता के भी चल बसने की खबर आती है,  बूढ़े माता पिता के अचानक इस दुनियां से चले जाने से पूरा परिवार सदमे में सन्न रह जाता है l बेटा, बहु और पोती के कोविड 19 के पॉजिटिव होने के कारण बेटे का हाथ तक उसके माता पिता की चिता को नहीं लगता,  इस विचित्र और लाचार परिस्थिति से बेबस परिवार जन मानसिक रूप से टूट जाते हैl इस बेबसी में बस आंसू ही एक मात्र सहारा और अपने भविष्य अर्थात बीबी बच्चों की चिंता में बेटा ना जाने कितने ही विचारों से घिर जाता है,  उसे कुछ सूझता नहीं कि वो क्या करें क्या ना करें l आपने माता पिता का साया अचानक उठ जाने के दर्द और पीड़ा के साथ- साथ प्रशासन के बदहाल व्यवस्था से भी उसे झूझना पड़ता है l पिने के लिए वाटर कूलर का पानी ( जो कि कोविड से संक्रमितों के लिए अनुकूल नहीं होता ), टॉयलेट  बाथरूम में गन्दगी,  कॉकरोच आदि और खाने का भोजन भी बेस्वाद शायद कैदियों को भी ऐसा खाना नहीं दीया जाता होगा जेल में l खैर ईश्वर की कृपा से बेटा बहू और बच्ची इस महामारी से बाहर निकल आते है पर यह टीस बेटे के मन में हमेशा रहती है कि वह अपने माता पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाया और बस अस्ति विसर्जन के संस्कार पर ही उसे संतुष्ट होना होगा l

✒️राजेश लाख

नमक

 समझकर सुलझा हुआ,  अपनेपन में कुछ कह दीया हमने l

वो हमें अपना न समझ, दूसरों से शिकायत कर बैठे ll
इससे तो अच्छा था कि नमक न खाते,  न पनाह में उनकी रहते l
अहसास यु कि वो अपने है, यह भ्रम तो न हम दिल में पालते ll

हमारे बुजुर्गो पर

 ये पल,  वो यादें, दिल में सदा महकती रहेगी,  बस ! वो अपने, उन बुजुर्गों का सीर पर हाथ,  वो सांत्वना के बोल,  वो डाट,  वो प्यार,  वो दुलार,  वो रूठना, वो मनाना सब कही खलेगा,  कुछ पल की यादें गुदगुदायेगी, कुछ में आँखों से नीर स्वयं ही बहेगे,  बस यादें,  कुछ खट्टी,  कुछ मीठी.................. 🌹🙏🌹

मनोज कुमार पर लेख

 मुझे उनकी सन 1981 बनी फ़िल्म क्रांति का एक गीत याद आ रहा है "मेरा चना है अपनी मर्ज़ी का", अंग्रेज़ों से आज़ादी के मतवालों के संघर्ष का ये गीत आज भी रोंगटे खड़े करता है l इस गीत के गीतकार  संतोष आनंद है और  संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का है,  रफ़ी साहब, लता दीदी, किशोर कुमार और नितिन मुकेश ने संयुक्त स्वर दिया है l आईये इस गीत का कुछ अंश मैं आपके समक्ष रख रहा हूँ l


सन 1968 में बनी फ़िल्म पत्थर के सनम,  मजरूह सुल्तानपुरी के बोल, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत, रफ़ी साहब की आवाज़ को मनोज कुमार पर फिल्माया गया मशहूर टाइटल सांग " पत्थर के सनम तुझे हमने महोब्बत का खुदा जाना l कुछ पंक्तिया पेश है l

"भारत को भारत रत्न" अर्थात मनोज कुमारजी को भारतरत्न  क्यू दिया जाना चाहिए? 

तो इसका जवाब है कि जिस दौर में हमारा समाज पश्चिमी सभ्यता,  वेशभूषा,  खानपान की  नक़ल कर रहा था और अपनी सभ्यता से विमुख हो रहा था,  उनकी फ़िल्म " पूरब और पश्चिम" और अन्य कई फिल्मों के ज़रिए हमारे भारत की समृध्द और विशाल सभ्यता को दर्शाकर एक देशभक्ति का जज़्बा उन्होंने पैदा किया देश की मिट्टी की खुशबु से रू- ब -रू कराया   l पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के "जय जवान जय किसान" के नारे को लेकर जवानों और किसानों के अष्ट पहलुओं पर फिल्मे बनाई,  उनकी हरेक फ़िल्म समाज को आईना दिखाती है l उनका साहित्य सामाजिक विषमताओं को दर्शाता ही नहीं बल्कि उसपर गहन चिंतन करने पर मजबूर भी करता हैl हालांकि उन्हें पद्मश्री और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चूका किन्तु ऐसे महान दार्शनिकर, समाज सुधारक,  फ़िल्मकार, निर्देशक,  निर्माता,  एक्टर को उनके अनन्या योगदान के लिए "भारत रत्न " दिया जना चाहिए l 

मैं आज की इस चर्चा सत्र में हमारे मुख्य अतिथि श्री अमरजीत सिँह कोहली जी  जो सखा संस्था के संस्थापक अध्यक्ष है, को साधुवाद देता हूँ कि उन्होंने इस मोहिम को ज्ञापन पर हस्ताक्षर के साथ आगाज़ किया है और इस कारवा को आगे जनमानस तक एक अभियान के रूप में ले जाने का संकल्प लिया है l आज के इस सत्र में भाग लेने वाले डॉ. राजिंदर कुमार,  श्री अनिल ओबेराय, श्री सुरेंद्र पुष्करणा का हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ और आजके इस सत्र कि समाप्ति की  घोषणा करता  हूँ l अनिल ओबेराय एक सूचना  प्रौद्योगिकी व्यावसाइक है और  हारमोनिका के उस्ताद है l आप कॉलेज बैंड का एक हिस्सा रहें है ओर आकाशवाणी,  टी वी और कॉर्पोरेट जगत में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके है l आपने क्रोमेटिक हारमोनिका पर  बॉलीवुड, हृदयस्पर्शी और  सूफियाना गीतों  के माध्यम से कई महफिलों में वाह वाही बटोरी है ओर इस वाद्य यँत्र को नई पहचान ओर ऊचाई प्रदान की है l
 सुरेंदर पुष्करणा दिल्ली के जाने माने वरिष्ठ गायक और कवि है l आपने दिल्ली के सभी प्रख्यात ऑडिटोरियमो और कॉर्पोरट जगत में संगीत के आयोजन किए है l आप बॉलीवुड गीतों पर पकड़ रखते है, भजन, सुफियाना कलाम लिखते और संगीतबद्ध करते हैl आप सरल स्वभाव के धनी है और संगीत प्रेमियों के चहिते है l
डॉ. राजिंदर कुमार पेशे से एक होमिओपॅथी के वरिष्ठ डॉक्टर है l आपने कई लाइलाज बिमारियों का इलाज किया है l आप अपने डॉक्टरी पेशे के साथ साथ संगीत में भी गहन रूचि रखते है और आपने इस विषय पर के. एल. सहगल के ज़माने से तलत महमूद  और उनकी अगली पीढ़ी तक के संगीत पर गहन अध्ययन और अनुसन्धान किया है l साथ ही आपकी मखमली आवाज़ और बोलने की शैली आपको एक विशिष्ठ कोटी का उदघोषक बनाती है l
श्री अमरजीत सिंह कोहली को संगीत जगत में पितामह के रूप में जाना जाता है l आप ब्यूरो औफ इंडियन स्टैंडर्ड से निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए है और सखा संस्था के संस्थापक अध्यक्ष है और विगत 54 वर्षों से नए प्रतिभावान कलाकारों को एक नामचीन मंच उपलब्ध कराते आ रहें है जिनमें सोनू निगम,  श्रेया घोषाल ये प्रख्यात नाम शामिल है l आप बॉलीवुड और संगीत जगत में मजबूत  पकड़ रखते  हैl उम्र के इस पड़ाव पर भी आपकी याददाश्त दुरुस्त है, इन सब के अलावा आप नम्र, परोपकारी और सब की मदत के लिए तत्पर रहने वाले व्यक्ति है l  इस ऑनलाइन सत्र में आपने मुख्य अतिथि के रूप में आकर हमारा मान बढ़ाया है l

फिल्मे समाज का आइना होती है,  यु ही नहीं कहा जाता l फिल्मों के माध्यम से जो भी परोसा जाता है उसका प्रभाव काफ़ी गहरा होता है l मनोज कुमार जी का फ़िल्मी सफर देखे तो बड़ा ताज्जुब होता है कि उन्होंने सेलुलॉइड के माध्यम से सामाजिक विषमताओं को दूर करने,  देशप्रेम, देशभक्ति,  किसानों की समस्याओ और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और सभ्यता के संरक्षण के दर्शन कराये और भारतीयता की अलख जगाई l 
उदाहरण के लिए बताना चाहूंगा जैसे :
1. फ़िल्म पूरब और पश्चिम : इस फ़िल्म के माध्यम से जनमानस पर प्राचीन समृद्ध भारतीय सभ्यता और संस्कारों की छाप छोड़ी l
2. फ़िल्म क्रांति और शहीद भगत सिंह : के माध्यम से नागरिकों में  देशभक्ति का जज्बा और शौर्य का संचार किया l
3. फ़िल्म उपकार : के माध्यम से किसानों की अष्ट पहलु समस्याओ को उदृत किया l
4. उनकी कोई भी फ़िल्म ले लीजिये,  उनका साहित्य ले लीजिये जो सामाजिक समस्याओ पर चोट ही नहीं करता बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को उन विषयों  पर चिंतन मनन करने पर मजबूर कर देता है l
भुपूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के नारे " जय जवान जय किसान " को सही मायनों में अगर किसीने सेलुलॉइड के माध्यम से चरितार्थ किया है तो वो केवल मनोज कुमार जी की फिल्मों में देखने को मिलता है l 
क्या हम फँस मानते है कि ऐसी महान हस्ती का सम्मान सिर्फ पद्मश्री और दादा साहब फाल्के अवार्ड से हो सकता है? 

आजके इस ऑनलाइन प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि श्री अमरजीत सिंह कोहली जी जो सखा संस्था के संस्थापक अध्यक्ष भी है से अनुरोध करता हूँ कि वे इस ओर अपना मंतव्य रखे ओर आगे कि रणनीति से अवगत कराये,  श्री अमरजीत सिंह कोहलीजी l